
Chhath Puja 2025: Surya Dev Ki Aaradhna Aur Maa Chhathi Maiya Ka Mahaparv
छठ पूजा का इतिहास और उत्पत्ति
छठ पूजा की परंपरा वैदिक काल से मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि ऋग्वेद में सूर्य देव की उपासना का उल्लेख मिलता है। वेदों में वर्णित “सूर्य सूक्त” में सूर्य को जीवनदाता, रोगनाशक और ऊर्जादाता बताया गया है।
पुराणों के अनुसार, छठ पूजा की शुरुआत सत्ययुग में माता शशि (छठी मइया) द्वारा की गई थी। उन्हें सूर्य देव की बहन कहा जाता है। छठी मइया को बच्चों की रक्षा करने वाली और संतान सुख देने वाली देवी माना जाता है।
महाभारत काल में भी छठ पूजा का उल्लेख मिलता है — कुंती पुत्र कर्ण, जो सूर्य देव के पुत्र थे, वे प्रतिदिन सूर्य की उपासना करते थे। इसी से प्रेरित होकर यह परंपरा समाज में स्थापित हुई।
इसके अलावा रामायण काल में भी इसका उल्लेख है। जब भगवान राम और माता सीता अयोध्या लौटे, तब उन्होंने राज्याभिषेक के बाद कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को सूर्य देव की पूजा की थी। यह वही दिन है, जब आज भी छठ पर्व मनाया जाता है।
छठ पूजा की धार्मिक मान्यता
छठ पूजा को सूर्य देव और छठी मइया की आराधना का महापर्व कहा जाता है। सूर्य देव को जीवन और ऊर्जा का स्रोत माना गया है। सूर्य की उपासना से शरीर को ऊर्जा, मन को शांति, और आयु में वृद्धि होती है।
छठ पर्व में कठोर नियमों, शुद्ध आहार और संयमित आचरण का विशेष महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति श्रद्धा और शुद्ध मन से इस व्रत को करता है, उसकी सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं और घर में सुख-शांति बनी रहती है।
छठ पूजा का महत्व – श्रद्धा, शुद्धता और विज्ञान का संगम
छठ पूजा का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी अत्यंत गहरा है।
- सूर्य की किरणें और स्वास्थ्य:
इस दिन सुबह और शाम के समय सूर्य की किरणें शरीर के लिए अत्यंत लाभदायक मानी जाती हैं। यह विटामिन D का प्राकृतिक स्रोत हैं, जो हड्डियों और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करती हैं। - जल और वायु शुद्धता:
छठ पूजा में जलाशय, नदी, तालाबों की सफाई होती है, जिससे पर्यावरण भी स्वच्छ रहता है। यह प्रकृति के संरक्षण का प्रतीक है। - उपवास और संयम:
व्रत के दौरान शरीर डिटॉक्स होता है, जिससे स्वास्थ्य बेहतर होता है। मन भी अनुशासित और शांत रहता है। - सामाजिक एकता:
यह पर्व जाति-धर्म, अमीरी-गरीबी के भेदभाव से ऊपर उठकर सभी को एक करता है। सब लोग मिलकर घाट की सफाई करते हैं, गीत गाते हैं, और एक-दूसरे की सहायता करते हैं।
छठ पूजा की चार दिवसीय विधि
छठ पर्व चार दिनों का होता है। हर दिन का अपना नियम और विशेष महत्व होता है।
पहला दिन – नहाय-खाय
इस दिन व्रती सबसे पहले स्नान करके घर की शुद्धि करते हैं। गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करके सूर्य देव को जल अर्पित किया जाता है। फिर घर में साफ-सफाई के बाद शुद्ध शाकाहारी भोजन बनाया जाता है — सामान्यतः लौकी-भात और चने की दाल। इस दिन व्रती केवल एक बार भोजन करते हैं।
दूसरा दिन – खरना (लोहंडा)
NCL Certificateयह दिन अत्यंत पवित्र होता है। दिनभर निर्जला उपवास रखने के बाद शाम को सूर्यास्त के बाद प्रसाद तैयार किया जाता है। इसमें गुड़ की खीर, रोटी और केला का प्रसाद होता है। यह प्रसाद ग्रहण करने के बाद अगले 36 घंटे का निर्जला व्रत आरंभ होता है।
तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य
यह दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है। व्रती शाम को नदी या तालाब के किनारे घाट पर जाकर अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य देते हैं। महिलाएँ पारंपरिक वेशभूषा में गीत गाती हैं और दीप जलाती हैं। पूरा वातावरण “छठ मइया के गीतों” से गूंज उठता है।
चौथा दिन – उगते सूर्य को अर्घ्य
अंतिम दिन सुबह-सुबह व्रती परिवार के साथ घाट पर जाकर उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। यह अर्घ्य जीवन में नए प्रकाश, ऊर्जा और सकारात्मकता का प्रतीक है। पूजा के बाद प्रसाद वितरित किया जाता है और व्रत का समापन होता है।
🎶 लोकगीत और संस्कृति
छठ पूजा का सबसे भावनात्मक पक्ष हैं इसके लोकगीत। ये गीत न सिर्फ भक्ति से ओत-प्रोत होते हैं, बल्कि इनमें मातृत्व, प्रेम, श्रद्धा और लोकसंस्कृति की झलक मिलती है।
जैसे कि —
“केलवा के पात पर, उगले सूरज देव,
लs छठी मइया, आशीष दीं न।”
ये गीत पीढ़ियों से लोगों के दिलों में बसे हैं। छठ के गीत महिलाएँ घाट पर गाती हैं, जिससे वातावरण आध्यात्मिक और पवित्र बन जाता है।
आधुनिक समय में छठ पूजा
आज के युग में भी छठ पूजा की महिमा और आस्था कम नहीं हुई है।
अब मेट्रो शहरों में भी छठ घाट बनाए जाते हैं, लोग अपने घरों की छतों या सोसाइटी के परिसर में यह व्रत श्रद्धा से करते हैं।
भले ही समय बदल गया हो, पर आस्था वही है, विश्वास वही है, और छठ मइया की कृपा भी वही है।
छठ पूजा का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
वैज्ञानिकों के अनुसार छठ पूजा में सूर्य को जल अर्पित करने की प्रक्रिया एक नेचुरल थैरेपी है।
जब कोई व्यक्ति जल में खड़ा होकर सूर्य की ओर देखता है, तो सूर्य की किरणें और जल की परावर्तित किरणें शरीर की कोशिकाओं पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं।
इससे मानसिक शांति मिलती है और शरीर में ऊर्जा का संचार होता है।
प्रकृति संरक्षण और पर्यावरणीय संदेश
छठ पूजा केवल पूजा नहीं, बल्कि एक प्राकृतिक पर्व है जो हमें बताता है कि सूर्य, जल, मिट्टी और मानव का रिश्ता कितना पवित्र है।
यह हमें सिखाता है कि जब हम प्रकृति की पूजा करते हैं, तो वह भी हमें जीवन देती है।
आज जब पर्यावरण संकट गहरा रहा है, तब छठ पूजा जैसे पर्व हमें प्रकृति से जुड़ने का संदेश देते हैं।
निष्कर्ष – आस्था की अमर ज्योति
छठ पूजा सिर्फ एक पर्व नहीं है, यह श्रद्धा, निष्ठा, विज्ञान और संस्कृति का अद्भुत संगम है।
यह हमें सिखाती है कि जब हम सच्चे मन से, बिना किसी स्वार्थ के भक्ति करते हैं, तो जीवन में प्रकाश और सुख-शांति आती है।
माँ छठी मइया की कृपा से घर में समृद्धि आती है, परिवार में एकता बढ़ती है, और समाज में प्रेम और सद्भाव फैलता है।
🌞 “जय छठी मइया!”
सूर्य देव की किरणें आपके जीवन में प्रकाश और ऊर्जा लाएँ, यही कामना है।
जब अक्टूबर की सुनहरी किरणें धीरे-धीरे धरती को स्पर्श करती हैं, तभी बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के घाटों पर एक अद्भुत भावना जागती है — छठ पूजा 2025 की महिमा। यह त्योहार सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि जीवन, प्रकृति, बलिदान और आत्मीयता का प्रतिरूप है। चार दिवसीय यह व्रत-यात्रा नहाय-खाय से शुरू होती है, जब व्रती स्नान करके शुद्धता का संकल्प लेते हैं और साधारण, सादे भोजन से मन और तन को संयम और भक्ति से जोड़ते हैं।
दूसरे दिन खरना के दौरान तपस्या की चरम सीमा दिखती है — दिनभर निर्जला व्रत रखकर शाम को गुड़-चावल की खीर व नम्र रोटियाँ अर्पित की जाती हैं और उसी से व्रत की शुरुआत होती है। तीसरे दिन संध्या अर्घ्य की बेला में, डूबते सूर्य को अर्पित अर्घ्य के समय नदी या तालाब के तटों पर हजारों व्रती हाथों में सोप लेकर खड़े होते हैं, लोकगीत गाते हैं,
मन की पवित्रता और श्रद्धा से भर जाते हैं। अंतिम दिन की सबसे भावपूर्ण बेला — उषा अर्घ्य — की शुरुआत भोर से पहले होती है, जब उगते सूरज को अर्पित पानी, फल, दिये और प्रसाद के साथ व्रत पूरा किया जाता है, और फिर प्रसाद बांटा जाता है, व्रतियों के चेहरों पर संतोष और आनंद की हल्की मुस्कान होती है।
इस पुनीत आयोजन में प्राकृतिक तत्व — सूर्य, जल, धरती — की आराधना होती है, बिना किसी मूर्ति या पाषाण स्वरूप के। इसीलिए कहा जाता है कि छठ पूजा एक शाश्वत सेतु है मनुष्य और प्रकृति के बीच। इसमें आत्मशुद्धि, धैर्य, संयम और आदर का समावेश है। इस छठ पर संकल्प ली जाती है कि हम श्रद्धा, समर्पण 2025
और स्वच्छता के साथ जीवन जीएँ। 2025 का यह पर्व न केवल व्यक्तिगत ईश्वर भक्ति का पथ है, बल्कि एक सामूहिक प्रतिबद्धता भी है — कि हम अपने नदियों, तालाबों, जल स्रोतों को अविरल और स्वच्छ बनाए रखेंगे, पर्यावरण को सम्मान देंगे। इस छठ पूजा के दौरान, हम सिखते हैं कि कठिन रास्ते पर चलना सरल नहीं, लेकिन आत्मा को उज्जवल बनाता है। इस वर्ष छठ पूजा 25 अक्टूबर से 28 अक्टूबर तक मनाई जाएगी। (नहाय-खाय: 25 अक्टूबर, खरना: 26 अक्टूबर, संध्या अर्घ्य: 27 अक्टूबर, उषा अर्घ्य: 28 अक्टूबर) 2025
छठ पूजा 2025 सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि वह Taaja Update की रोशनी है — जहाँ हम लोक संस्कृति और आध्यात्मिक चेतना को जोड़ते हैं, जहाँ हर रिपोर्ट, हर वर्णन, हर शब्द में श्रद्धा झलकती है। इस वर्ष, 2025
Taaja Update के माध्यम से हम छठ की यह पावन कहानी हर पाठक तक ले जाना चाहते हैं — कि कैसे सूर्य की उपासना ने जमीं को पुण्य, सामाजिक एकता और आत्मिक प्रेम से भर दिया है। इस छठ, नव ऊँचाइयों की कामना करें, स्वच्छता की प्रतिज्ञा करें, और मानो सूर्य की उर्जा आपके जीवन को नवजीवन से भर दे। 2025
छठ पूजा 2025 का आगमन पूरे भारतवर्ष में एक दिव्य वातावरण लेकर आता है। सूरज की पहली किरण से लेकर अंतिम अर्घ्य तक, यह पर्व भक्ति, अनुशासन और पवित्रता की मिसाल है। जब घाटों पर सुबह-सुबह लोकगीतों की गूंज उठती है — “केलवा जे फरेला घवद से, ओ पिनिया के धार…” — तब लगता है जैसे प्रकृति खुद 2025
आशीर्वाद बरसा रही हो। इस वर्ष छठ पूजा 25 अक्टूबर से शुरू होगी और 28 अक्टूबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर संपन्न होगी। चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व सिर्फ एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि यह आत्मिक अनुशासन और पारिवारिक एकता का प्रतीक है। महिलाएं (जिन्हें “पार्वतीया” कहा जाता है) अपने घरों को साफ-सुथरा करती हैं, घाटों को सजाती हैं, और पूरे मनोयोग से सूर्यदेव की आराधना के लिए तैयारी करती हैं।
पहले दिन नहाय-खाय में शुद्धता का संकल्प लिया जाता है, जो इस पर्व की आत्मा मानी जाती है। दूसरे दिन खरना पर पूरे दिन व्रत रखने के बाद शाम को गुड़-चावल की खीर और ठेकुआ का प्रसाद बनाया जाता है, जिसे सबके साथ बाँटकर खाया जाता है। तीसरे दिन की संध्या में जब हजारों दीपक नदी के जल में तैरते हैं 2025
, तो पूरा वातावरण स्वर्गिक बन जाता है। डूबते सूरज के सामने folded hands के साथ जब व्रती महिलाएं गीत गाती हैं — “सूरज देवता हमार अर्घ्या स्वीकार करी…” — तब मन श्रद्धा से भर उठता है। 2025
चौथे दिन की सुबह का नजारा अद्भुत होता है, जब उगते सूरज की सुनहरी किरणें जल की सतह पर पड़ती हैं और भक्तजन उषा अर्घ्य अर्पित करते हैं। इस क्षण में वातावरण में एक अद्भुत ऊर्जा होती है, जैसे पूरी धरती भक्ति के रंग में रंग गई हो। 2025
2025 में छठ पूजा पर्यावरणीय चेतना का भी प्रतीक बनेगी। सरकार और स्थानीय प्रशासन द्वारा घाटों की स्वच्छता, प्लास्टिक-मुक्त पूजा सामग्री और जल संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। 2025
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर #ChhathPuja2025 और #TaajaUpdate ट्रेंड करने की संभावना है, क्योंकि यह त्योहार अब सिर्फ बिहार या उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे देश और विदेशों में बसे प्रवासियों के दिलों में बस चुका है। दुबई, लंदन, न्यूयॉर्क और नेपाल में भी इस बार छठ पूजा की झलक देखने को मिलेगी। 2025
Taaja Update के अनुसार, इस वर्ष कई राज्यों ने छठ व्रतियों के लिए विशेष सुविधा योजनाएं शुरू की हैं — जैसे घाटों पर फ्री ड्रिंकिंग वॉटर, मेडिकल टीम, और सुरक्षा व्यवस्था। यह त्योहार न केवल आस्था की गहराई को दर्शाता है, बल्कि यह समाज के हर वर्ग को एक साथ जोड़ने का माध्यम है। हर उम्र, हर जाति, हर वर्ग का व्यक्ति इस पर्व में समान रूप से भाग लेता है। यही तो है छठ पूजा की सबसे बड़ी शक्ति — एकता, समानता और भक्ति का संगम। 2025
जैसे-जैसे छठ पूजा 2025 करीब आ रही है, तैयारियाँ जोरों पर हैं। लोग नए बांस के दौरे, सूप और टोकरी खरीद रहे हैं, घरों की 2025दीवारों पर मिट्टी के रंग से सजावट की जा रही है, 2025
और आंगन में दीपों की रोशनी की तैयारी शुरू हो चुकी है। इस बार का छठ न केवल सूर्यदेव की आराधना का पर्व होगा, बल्कि स्वच्छता, एकता और नई आशा का प्रतीक भी बनेगा। जब सूर्यदेव की किरणें अर्घ्य के जल में प्रतिबिंबित होंगी, तो ऐसा लगेगा जैसे हर घर में नई ऊर्जा, नई शुरुआत और नए संकल्प का सूर्योदय हुआ है। 2025

